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कठिनाई में भी उम्मीद है..

[तनिषा कुमारी ने सिलाई केंद्रों का दौरा किया]


पाबंदी से आज़ादी तक का सफ़र आसान नहीं होता, मगर

जब घर-परिवार में जरूरत परे तो महिलाएं अपनी पाबंदियां तोड़ देंती है।


उसी का उदहारण हैं रेखा कुमारी जो आश्रय अभियान में 17 अप्रैल 2025 से सिलाई सीख रही है।

वह अभी पटना के दीघा घाट में रहती है।


रेखा जी के पति का दोनों हाथ एक सड़क दुर्घटना में टूट चुका था जिसके कारण घर सम्भालने के लिए उन्हें सिलाई का काम सीखना पर रहा है।

रेखा कुमारी (काली सारी में)
रेखा कुमारी (काली सारी में)

जिसकी मदद से आगे जाकर वो पैसे कमाएंगी और अपने पति का उचित इलाज़ करवाएगी।


इससे पहले रेखा जी के पति ने उन्हें घर से बाहर काम करने की इजाज़त नहीं दी थी।

मगर वह अपने पति के इलाज के लिए उनसे लड़- झगड़कर उन्होंने अपनी साड़ी पाबंदियां तोड दी और सिलाई सीखने लगी।


उनके 2 छोटे बेटे है जिनकी जिम्मेदारी भी उन्हें उठानी है।

उनका पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई अब सब उनकी ज़िम्मेदारी है।


5 जुलाई 2025 जिस दिन मैं उनसे मिलने गई थी, उसी दिन रेखा जी को अपने पति को लेकर दीघा के सरकारी अस्पताल में जाना था।


उन्होंने मुझसे से जाने की अनुमति ली और उसी समय अस्पताल के लिए निकल गई।

उस समय वो बहुत जल्दीबाजी में थी क्योंकि वो अपने पति को लेकर बहुत चिंतित थी।


रेखा जी जल्द-से-जल्द सिलाई मशीन खरीदना चाहती है जिसके लिए वह पैसे बच्चा रही हैं। सिलाई मशीन खरीद कर वह लोगों के कपड़े सिलेंगी और उससे अपने परिवार की रोजी-रोटी चलाएगी। उन्हें कठिनाई में भी उम्मीद है कि सब ठीक हो जाएगा।


आश्रय अभियान लोगो को केवल कौशल ही नहीं देता हैं बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए सहायता भी करता है।

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